सऊदी अरब में धार्मिक सुधार आंदोलन! सरकार में मस्जिदों का दखल खत्म, उठाए ऐतिहासिक कदम

रियाद: सऊदी अरब में धार्मिक सुधार के लिए कदम उठाए जा रहे हैं, जिसके विरोध में अब धर्मगुरुओं ने सऊदी किंगडम के खिलाफ मोर्चा खोलना शुरू कर दिया है। मस्जिदों में अजान के समय लाउडस्पीकर की आवाज को उसकी क्षमता के एक तिहाई कर दिया गया और किंगडम की तरफ से कहा गया कि अजान का मतलब खुदा का इबादत होता है, शोर मचाना नहीं, जिसको लेकर सऊदी अरब के मौलानाओं में किंगडम को लेकर गुस्सा दिखाई दे रहा है। लेकिन, किंगडम ने साफ कहा है कि सऊदी अरब धार्मिक और सामाजिक सुधारों की तरफ बढ़ चला है और क्राइउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान चाहते हैं कि नये सऊदी अरब को दुनिया कट्टरता से जोड़कर ना देखे। मुस्लिमों के सबसे पवित्र शहर मक्का और मदीना सऊदी अरब में ही स्थिति है और सऊदी अरब को ही इस्लाम का घर माना जाता है। सऊदी अरब में इस्लाम के वहाबी संप्रदाय को मान्यता है, जिसकी वजह से तेल संपन्न देश सऊदी अरब को धार्मिक कट्टरता के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन सऊदी अरब क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने देश को मजहबी कट्टरता से निकालने के लिए एक तरह की मुहिम छेड़ दी है और उन्होंने इसके लिए 2030 का टार्गेट तय किया है। सऊदी सरकार का मानना है कि सऊदी अरब की पहचान एक तेल संपन्न और कट्टर मुस्लिम देश के तौर पर ना हो, बल्कि एक उदार देश के तौर पर सऊदी अरब की पहचान हो, जहां हर धर्म और हर संप्रदाय को एक समान, एक नजर से देखा जाता है और किसी के ऊपर कोई धार्मिक पाबंदी ना हो। लिहाजा क्राउन प्रिंस ने मजहबी कट्टरता के खिलाफ बेहद सख्त मुहिम चला रखी है, जिसके खिलाफ अब उन्हें प्रतिकार का सामना करना पड़ रहा है।

मस्जिदों में लाउडस्पीकर को लेकर सऊदी प्रशासन से नियम बनाया तो मौलानाओं मे सऊदी किंगडम का विरोध करना शुरू कर दिया है। मस्जिदों में लाउडस्पीकर को इस्लाम की परंपरा से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन किंगडम की तरफ से कहा गया कि लाउडस्पीकर का इस्लाम से कोई संबंध नहीं है और अजान का मतलब किसी दूसरे को परेशान करना नहीं है। सऊदी किंगडम ने कहा कि अजान की तेज आवाज की वजह से बच्चों को सोने में दिक्कत होती है, लिहाजा मस्जिदों में अजान के वक्त आवाज को काफी कम रखा जाए। मस्जिदों के लाउडस्पीकर क्षमता को एक तिहाई कर दिया गया। इसके साथ ही ये भी नियम बना दिया गया है कि पूरी अजान के दौरान लाउडस्पीकर चलाए रखना जरूरी नहीं है, सिर्फ शुरू में लाउडस्पीकर चलाकर फिर बंद कर दिया जाए।

सऊदी अरब, जिसे इस्लाम का घर माना जाता है, और जिस देश में हजारों मस्जिद हैं, वहां के मौलानाओं ने किंगडम का विरोध करना शुरू कर दिया है। कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि मौलाना सीधे तौर पर तो किंगडम के खिलाफ आवाज उठाने से डरते हैं, लिहाजा उन्होंने अलग अलग माध्यमों से विरोध करना शुरू किया है। जिसमें ट्विटर पर हैशटैग चलाया गया कि ‘हम मस्जिदों की आवाज को वापस लाने की मांग करते हैं’। लेकिन, ट्विटर के इस ट्रेंड से किंगडम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। जिसके बाद सऊदी अरब के अंजर मॉल्स, रेस्टोरेंट और बार के अंदर भी तेज म्यूजिक बंद करने की मांग की जा रही है। लेकिन, किंगडम ने एक और कदम उठाते हुए नया नियम ये जारी कर दिया कि मस्जिदों में लाउडस्पीकर लगाने किए प्रशासन से परमिट लेनी होगी, जिसके बाद मस्जिदों के मौलानाओं में भारी गुस्सा देखा जा रहा है। लेकिन, सऊदी प्रशासन को इनसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।

सऊदी किंगडम ने देश को तेल के बाद की दुनिया में ले जाने के मिशन पर काम करना शुरू कर दिया है, जिसमें बगैर उदारीकरण व्यापार करना काफी मुश्किल होगा। सऊदी किंगडम का मानना है कि भले अभी तेल की वजह से दुनिया सऊदी अरब का सम्मान करती है और सऊदी अरब की बातों को सुना जाता है, लेकिन तेल खत्म होने के बाद सऊदी अरब को अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। लिहाजा, सऊदी को भविष्य में आने वाले संकट से बचाने के लिए सऊदी अरब की सरकार ने उदारीकरण की प्रक्रिया देश में तेजी से शुरू कर दी है और सबसे पहले धार्मिक कट्टरता पर हथोड़ा चलाया जा रहा है। समाचार एजेंसी एएफपी से बात करते हुए यूनिवर्सिटी ऑफ एस्सेक्स के पॉलिटिकल लेक्चरर अज़ीज़ अल्घाशियान कहते हैं कि ‘सऊदी अरब अपनी बुनियाद को फिर से बनाने की कोशिश कर रहा है’। उन्होंने कहा कि ‘सऊदी अरब एक ऐसा देश बनने की कोशिश में है, जहां कोई धार्मिक कट्टरता नहीं हो, जहां हर संस्कृति का मेल हो, जहां के बारे में सोचकर किसी को डर ना लगे, जहां पर्यटन समृद्ध हो और जहां निवेश की काफी ज्यादा संभावनाए हों।’

सऊदी अरब में एक वक्त अगर कोई नमाज के वक्त नमाज पढ़ता नहीं मिलता था तो उसे पुलिस जबरदस्ती मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए भेजती थी, लेकिन अब हर दिन पांचों वक्त नमाज के वक्त सऊदी अरब में दुकानें और मॉल्स खुला रहता है। यहां तक की रमजान के महीने में भी दिन में होटलों के खुले रहने की इजाजत दी जा चुकी है। सऊदी अरब में एक वक्त मस्जिदों के मौलाना अपनी मर्जी से मस्जिदों के लिए कानून बना सकते थे, लेकिन अब किंगडम ने मौलानाओं के अधिकारों को छीन लिया है। अब मौलाना वही कर सकते हैं, जो उन्हें सरकार की तरफ से कहा जाएगा। यहां तक कि अब सऊदी अरब में महिलाओं को गाड़ी चलाने की इजाजत दी जा चुकी है और यहूदियों को पूर्ण आजादी दी जा चुकी है।

सऊदी अरब में स्कूलों में सुधार कार्यक्रम काफी तेजी के साथ जारी है और सऊदी अरब की स्कूली किताबों के सिलेबस को बदला जा रहा है। सऊदी अरब में स्कूली किताबों से इस्लाम की कई मान्यताओं को बाहर कर दिया गया है, वहीं दूसरे धर्मों को भी सिलेबस में जोड़ दिया गया है। सऊदी अरब की स्कूली किताबों में रामायण, महाभारत और गीता की कुछ अध्यायों को शामिल किया गया है तो योग की पढ़ाई भी स्कूली किताबों में शामिल किया गया है। वहीं, अब सऊदी में अंग्रेजी की पढ़ाई करना अनिवार्य कर दिया गया है और इंग्लिश में पास होना छात्रों के लिए अनिवार्य है। हालांकि, सऊदी अरब में दूसरे धर्मावलंबियों के लिए अपने धर्म का प्रचार करना अब भी प्रतिबंधित है, लेकिन सऊदी सरकार के सलाहकार अली शिहाबी ने हाल ही में अमेरिकन मीडिया ‘इनसाइडर’ से कहा है कि सरकार जल्द दी सऊदी अरब में चर्च खोलने की इजाजत देने वाली है और चर्च के पास अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करने की इजाजत भी होगी। इसके साथ ही सऊदी अरब में अब शराब पर लगा हुआ प्रतिबंध भी हटाने पर विचार किया जा रहा है। कई सरकारी सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि सऊदी अरब में अब शराब बिकने की इजाजत दे दी जाएगी। अभी तक सऊदी में शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा हुआ था, क्योंकि इस्लाम में शराब को हराम माना गया है।

वहाबी संप्रदाय बाहुल्य सऊदी अरब में काफी तेजी के साथ धर्म को सरकार की नीतियों से अलग किया जा रहा है और धार्मिक संस्थाओं ने सरकार की नीतियों पर प्रभाव डालने वाले सभी अधिकार छीन लिए गये हैं। इसके साथ ही सऊदी अरब की सरकार ने धीरे धीरे ये तय करना भी शुरू कर दिया है कि वो दुनिया में साथी मुसलमान देशों के मुस्लिम मसलों के ऊपर अब ज्यादा ध्यान नहीं देगा। सऊदी सरकार ने विचार किया है कि वो उन मसलों को अब नहीं उठाएगा जिसे इस्लाम का रंग दिया गया हो। और इसकी बानकी इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के दौरान भी देखा गया था, जब सऊदी अरब ने हिंसा की निंदा तो की थी, लेकिन उसे मजहबी हिंसा मानने से इनकार कर दिया था। यहां तक की गल्फ में रहने वाले एक सऊदी अरब के एक डिप्लोमेट ने तो यहां तक कह दिया कि अब सऊदी अरब का शासन इस्लामिक कानून से नहीं होगा और सऊदी अरब सिर्फ मुस्लिमों के मसले नहीं उठाएगा। इसके साथ ही सऊदी डिप्लोमेट ने कहा कि ‘हमारे लिए अब कश्मीर या उइगर मुस्लिम कोई मुद्दा नहीं है। हम दुनिया में मानवता के लिए बनाए गये कानून के हिसाब से काम करेंगे ना कि कुछ मौलानाओं के द्वारा पुराने और घिसे-पिटे कानून के हिसाब से।’ सऊदी किंगडम ने कहा कि ‘दुनिया के सामने कट्टरपंथी इस्लाम की जगह उदारवादी इस्लाम आना चाहिए और सऊदी अरब का यही मिशन है कि इस्लाम के हंसते और खिलते चेहरे से दुनिया वाकिफ हो ना कि इस्लाम को लेकर लोगों के मन में किसी तरह का डर आए।’

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