नई दिल्ली: कोरोना वायरस की दूसरी लहर का प्रकोप में भारत में जारी है। इस दौरान कोरोना की पहली लहर में बहुत हद तक इलाज में मददगार प्लाज्मा थेरेपी दूसरी लहर में ज्यादा प्रभावी नहीं है। कोरोना मरीजों की गंभीरता या मौत की संभावना को कम करने में प्लाज्मा थेरेपी ज्यादा कारगर नहीं पाया जा रहा है। ऐसे में प्लाज्मा थेरेपी को कोविड-19 के क्लीनिकल मैनेजमेंट गाइडलाइंस से हटाए जाने की संभावना जताई जा रही है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की बैठक में ज्यादातर लोग इस बात के समर्थन में थे कि कोविड-19 मरीजों के इलाजों से संबंधित क्लीनिकल मैनेजमेंट गाइडलाइंस से प्लाज्मा थेरेपी को हटा दिया जाना चाहिए।
सूत्रों के मुताबिक बैठक में हिस्सा लेने वाले आईसीएमआर के सदस्यों का कहना है कि कोविड-19 के वयस्क मरीजों के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी प्रभावी नहीं दिख रहा है। कई मामलों में इसका अनुचित रूप से इस्तेमाल भी किया जा रहा है। हालांकि आईसीएमआर की ओर से इसको हटाने को लेकर फिलहाल कोई गाइडलाइन जारी नहीं की गई है। लेकिन रिपोर्टों में कगा गया है कि आईसीएमआर जल्द ही मामले में सलाह जारी करने वाली है। कोविड-19 टास्क फोर्स ने शुक्रवार (14 मई) को कोरोना वायरस से संक्रमित रोगियों के लिए दिए जाने वाले प्लाज्मा थेरेपी की समीक्षा करने के लिए बैठक की।
वर्तमान में कोविड-19 क्लीनिकल मैनेजमेंट गाइडलाइंस के मुताबिक कोरोना के लक्षणों की शुरुआत होने के हफ्ते भर (7 दिन) के भीतर प्लाज्मा दिया जा सकता है।
प्लाज्मा थेरेपी आईसीएमआर के क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल का हिस्सा है। 17 नवंबर, 2020 को आईसीएमआर ने प्लाज्मा थेरेपी को लेकर कहा था, प्लाज्मा थेरेपी वायरल संक्रमण के इलाज में पहले भी इस्तेमाल किया गया है। ये थेरेपी स्वाइन फ्लू, इबोला और सार्स (सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) के इलाज के दौरान अतीत में भी मरीजों को दिया गया है। हालांकि शरीर में इसका उपयोग ज्यादा नहीं करना होता है।