कोरोना की संभावित तीसरी लहर से पहले जान लीजिए देश की स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल

नई दिल्ली: कोरोना वायरस के चलते देश में लाखों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। महामारी की दूसरी लहर ने सबसे ज्यादा लोगों की जान ली। दूसरी लहर में कोरोना महामारी बड़े शहरों,छोटे शहरों और गांव तक पहुंच गया। हेल्थ एक्सपर्ट की मानें तो कोरोना की तीसरी लहर भी आने वाले कुछ समय में दस्तक दे सकती है। ऐसे में देश के सामने सबसे मुश्किल चुनौती होगी इस लहर से लोगों की जान बचाना। देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो जिस तरह की यह महामारी है उससे निपटने के लिए संसाधन बहुत कम है। ऐसे में तीसरी लहर में सबसे मुश्किल चुनौती देश के ग्रामीण इलाकों में है, जहां स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल बहुत ही बुरा है। अगर हम बिहार और केरल के गांव का उदाहरण लें तो बिहार के पुर्णिया में 23 मई को कोरोना के सक्रिय मामले 1254 थे। नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के अनुसार शहर में 199 बेड का अस्पताल है। ऐसे में अगर तीन फीसदी कोरोना के मरीज यानि 40 कोरोना के मरीज भी अस्पताल में भर्ती होते हैं तो अस्पताल का हर पांचवा बेड कोरोना के मरीज से भर जाएगा, ऐसे में अगर कोरोना के इतर दूसरी बीमारी के मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूर पड़ी तो तो इन बेड की संख्या और भी कम हो जाएगी। वहीं केरल के कन्नूर जिले की बात करें तो यहां 22 मई को कुल कोरोना के सक्रिय मामले 15416 थे और यहां अस्पताल में 5043 बेड उपलब्ध हैं। ऐसे में अगर मान लें कि 3 फीसदी मरीजों को भर्ती कराने की जरूरत पड़ी तो 460 मरीजों को बेड की जरूरत होगी जोकि कुल उपलब्ध बेड का 10 फीसदी से भी कम है

नेशनल हेल्थ प्रोफाइल के आंकड़ों के अनुसार देश में 2019 में देश में प्रति 10 लाख लोगों पर सिर्फ 600 बेड उपलब्ध हैं। वहीं बिहार में यह आंकड़ा प्रति 10 लाख सिर्फ 171 जबकि आंध्र प्रदेश की बात करें तो प्रति 10 लाख यह 1231 है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानक के अनुसार प्रति 10 लाख कम से कम 5000 बेड होने आवश्यक हैं। देश में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भारत बिल्कुल भी इसका सामना करने के लिए तैयार नहीं था। ना तो अस्पताल में बेड उपलब्ध थे, ना जरूरी दवाएं, ऑक्सीजन और ना ही लोगों को वैक्सीन लगी थी। ऐसे में देश को जरूरत है कि कम से कम समय में देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को तेजी से बेहतर किया जाए। इसके लिए सरकार को भारी निवेश की जरूरत है। लिहाजा प्राइवेट सेक्टर को भी इस क्षेत्र में आगे आने की जरूरत है।
रिपोर्ट के अनुसार देश में पंचायत में औसतन चार गांव हैं और हर गांव की आबादी तकरीबन 5729 है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तकरीबन 4-6 बेड होते हैं और एक मेडिकल ऑफिसर जबकि 14 पैरामेडिकल स्टाफ। वहीं समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की बात करें तो यहां 30 बेड होते हैं, जहां आईसीयू की सुविधा उपलब्ध होती है, इसके दायरे में चार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आते हैं। हर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अंतर्गत 128 गांव आते हैं, जिसकी औसत आबादी 170000 होती है। कोरोना के इलाजके लिए पीएचसी सबसे पहली मदद मुहैया कराता है। लेकिन इनपर बहुत ही अधिक आबादी का दबाव है। केरल में हर पीएचसी में तकरीबन 13746 लोगों की आबादी आती है, झारखंड में 97296 की आबादी आती है।

आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान मे सभी पीएचसी में में कम से कम 4 बेड उपलब्ध हैं, ओडिशा में सिर्फ 8 फीसदी पीएचसी में 4 बेड उपलब्ध हैं। उत्तर प्रदेश में 7410 आबादी पर सिर्फ एक स्वास्थ्य कर्मी है जबकि केरल में यह आंकड़ा 1821 है। देश में स्वास्थ्य सेक्टर पर जीडीपी का सिर्फ 0.3 फीसदी ही निवेश किया जाता है। वहीं राज्य के बजट में भी जीडीपी का सिर्फ 4 फीसदी ही स्वास्थ्य सेक्टर पर खर्च किया जाता है। हालांकि यह पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश से बेहतर है लेकिन चीन में स्वास्थ्य सेक्टर पर जीडीपी का 5 फीसदी, यूके में 10 फीसदी, यूएस में 17 फीसदी खर्च किया जाता है। इकोनॉमिक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार हेल्थ सेक्टर में निवेश करने के मामले में 189 देशों में भारत 179वें नंबर पर है। यानि भारत हैती और सूडान जैसे देशों की श्रेणी में आता है।

इंफ्रास्ट्रक्चर के अलावा देश में स्वास्थ्यकर्मियों की भारी कमी है। खासकर कि ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी सबसे ज्यादा कमी है। भारत में 10189 आबादी पर सिर्फ एक सरकारी डॉक्टर है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुसार यह आंकड़ो 1000 प्रति व्यक्ति एक डॉक्टर होना चाहिए। यूएस की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में छह लाख डॉक्टर और 20 लाख नर्स की जरूरत है। ऐसे में कोरोना की तीसरी लहर से पहले देश में अधिक से अधिक लोगों को कोरोना की वैक्सीन लगाने के साथ स्वास्थ्य सेक्टर में सक्रियता से कदम उठाने की जरूरत है।

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