नई दिल्ली: यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली में भारत को बहुत बड़ी कामयाबी मिली है। भारत हिंद महासागर में प्रमुख स्थान रखने वाले अपने दोस्त देश मालदीव को यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली में अध्यक्ष का पद दिलाने में कामयाब रहा है। भारत के लिए मालदीव को अध्यक्ष पद दिलाना कितनी बड़ी कामयाबी है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अभी जो यूएनजीए के अध्यक्ष हैं, वो तुर्की के रहने वाले हैं, जो इन दिनों पाकिस्तान के समर्थन में कई बयान देकर भारत के निशाने पर आए थे। मावदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद भारत की मदद से यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली में अध्यक्ष का पद जीतने में कामयाब हो गये हैं। यूएनजीए के 76वें अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद को 143 वोट मिले, जबकि अफगानिस्तान को 48 वोट मिले हैं। अब्दुल्ला शाहिद सितंबर में यूएनजीए अध्यक्ष पद का कार्यभार संभालेंगे। आपको बता दें कि सोमवार को हुए मतदान में यूनाइटेड नेशंस के 193 देशों ने हिस्सा लिया था। जिसमें अब्दुल्ला शाहिद के पक्ष में 143 देशों ने वोट डाला जबकि अफगानिस्तान के पक्ष में 48 देशों ने मतदान किया था। चुनाव जीतन के बाद भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अब्दुल्ला शाहिद को ट्विटर पर शुभकामनाएं दी हैं। एस. जयशंकर ने अपने ट्वीट में लिखा है कि मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद को यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली में चुनाव जीतने पर बहुत बहुत शुभकामनाएं।
अब्दुल्ला शाहिद को यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली के अध्यक्ष पद के लिए हुए चुानव में तीन चौथाई से ज्यादा वोट हासिल हुएए हैं। आपको बता दें कि यूएनजीए के अध्यक्ष पद के लिए वार्षिक चुनाव होता है और रोटेशन के आधार पर अलग अलग क्षेत्रों के देश इस चुनाव में हिस्सा लेते हैं। इस बार जो चुनाव हुआ है, उसमें एशिया-पैसैफिक क्षेत्र के देशों को हिस्सा लेना था और मालदीव पहली बार यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली के अध्यक्ष पद के चुनाव में जीत हासिल करने में कामयाब रहा है। आपको बता दें कि दिसंबर 2018 में ही अब्दुल्ला शाहिद का नाम मालदीव की तरफ से प्रस्तावित किया गया था और उन्हें भारत का भरपूर साथ मिला है।
दरअसल, अभी यूनाइटेड नेशंस महासभा का पद तुर्की के पास है, जो पूरी तरह से पाकिस्तान को समर्थन करता है। पिछले महीने यूएन महासभा अध्यक्ष पाकिस्तान के दौरे पर भी गये थे, जहां उन्होंने कश्मीर को लेकर विवादित बयान दिया। उन्होंने कहा था कि ‘यूनाइटेड नेशंस के प्लेटफॉर्म पर जम्मू-कश्मीर का मुद्दा पूरी ताकत से उठाना पाकिस्तान की जिम्मेदारी है’। उनके इस बयान पर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई थी। वहीं, अब जबकि भारत ने अपने दोस्त देश को इस पद पर जिताया है, तो भारत चाहेगा कि यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली की कार्यवाही निष्पक्ष तरीके से हो।
यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली के अध्यक्ष पद के लिए भारत किसी अपने दोस्त देश को जिताना चाहता था जबकि पाकिस्तान ऐसा नहीं चाहता था। मालदीव के विदेश सचिव ने पिछले साल नवंबर में भारत का दौरा किया था और उस दौरान भारत ने मालदीव को पूर्ण समर्थन देने का वादा किया था। उस वक्त तक इस चुनाव में मालदीव पूरी तरह से अकेला था, लेकिन भारत के समर्थन का ऐलान करने के साथ ही दुनिया के कई और देश मालदीव के समर्थन में उतर आए। हालांकि, ऐसा नहीं है कि अफगानिस्तान के उम्मीदवार भारत के दोस्त नहीं हैं, भारत की अफगानिस्तान की चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार से अच्छी दोस्ती है, लेकिन भारत मालदीव को लेकर पहले ही अपना समर्थन दे चुका था, इसीलिए भारत ने अफगानिस्तान का समर्थन नहीं किया।
भारत और मालदीव के बीच का संबंध बहुत लंबे अर्से से काफी घनिष्ठ रहा है और हिंद महासागर में मालदीव भारत का रणनीतिक साझेदार भी है। भारत अपने पड़ोसी देशों को जो आर्थिक और अन्य प्रकार की दूसरी मदद करता है, उसका सबसे बड़ा लाभार्थी मालदीव ही रहा है। भारत ने पिछले साल मई में मालदीव को 580 टन खाद्य सामग्री की आपूर्ति की थी। हालांकि, मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल में मालदीव-भारत के संबंधों में खटास जरूर आई थी और मालदीव चीन के पक्ष में झुकता नजर आया था, लेकिन मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सालेह के कार्यकाल में फिर से भारत-मालदीव संबंध पटरी पर आ चुके हैं। दरअसल, मालदीव रणनीतिक तौर पर भारत के नजदीक और हिंद महासागर में समुद्री मार्ग पर स्थिति देश है। और चीन भी अपना नियंत्रण मालदीव पर करना चाहता है, ताकि वो हिंद महासागर में अपने कदम बढ़ा सके, लिहाजा मालदीव के साथ बेहतर संबंध बनाना ही भारत के पक्ष में है।